कोरिया जिले में मनाया गया रीति-रिवाज से साल का पहला पर्व मकर संक्रांति मकर संक्रांति क्‍यों मनाते हैं इस दिन हुई थीं ये ऐतिहासिक घटनाएं

कोरिया जिले में मनाया गया रीति-रिवाज से साल का पहला पर्व मकर संक्रांति मकर संक्रांति क्‍यों मनाते हैं इस दिन हुई थीं ये ऐतिहासिक घटनाएं

मकर संक्रांति का पर्व भगवान सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के उपलक्ष में मनाया जाता है पूरे दुनिया में मकर संक्रांति का त्यौहार अलग-अलग नामों से हर देश और हर राज्य में मनाया जाता है अपनी अपनी मान्यताओं के साथ मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है कोरिया जिले में भी धूमधाम से मकर संक्रांति का पर्व मनाया गया।

मकर संक्रांति क्‍यों मनाते हैं इस दिन हुई थीं ये ऐतिहासिक घटनाएं

   मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में आने पर मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और देवलोक में दिन आरंभ होता है। हिंदू धर्म में ऐसे अनेक कारण बताए गए हैं जिनकी वजह से मकर संक्रांति का सभी 12 संक्रांतियों में विशेष महत्व है। श्रीमद्भगवद्गीता में भी मकर संक्रांति को बेहद शुभ बताया गया है।

 हिंदू धर्म में सूर्यदेवता से जुड़े कई प्रमुख त्‍योहारों को मनाने की परंपरा है। उन्‍हीं में से एक है मकर संक्राति। आज मकर संक्रांति का त्योहार मनाया गया है। शीत ऋतु के पौस मास में जब भगवान भास्‍कर उत्‍तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो सूर्य की इस संक्रांति को मकर संक्राति के रूप में देश भर में मनाया जाता है। वैसे तो मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को मनाई जाती है, लेकिन पिछले कुछ साल से गणनाओं में आए कुछ परिवर्तन के कारण इसे 15 जनवरी को भी मनाया जाने लगा है। इस साल भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई गई।

मकर संक्रांति दान और स्‍नान का विशेष महत्‍व

शास्‍त्रों में मकर संक्रांति के दिन स्‍नान, ध्‍यान और दान का विशेष महत्‍व बताया गया है। पुराणों में मकर संक्रांति को देवताओं का दिन बताया गया है। मान्‍यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस लौटता है।

*भीष्म पितामाह ने चुना था देह त्याग के लिए मकर संक्रांति का दिन*

मान्यता है कि इस अवसर पर दिया गया दान 100 गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।

मकर संक्रांति पौराणिक कथा

श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण के मुताबिक, शनि महाराज का अपने पिता से वैर भाव था क्योंकि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था, इस बात से नाराज होकर सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था।

*मकर संक्रांति और यमराज की तपस्या*

पिता सूर्यदेव को कुष्ट रोग से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हुए। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए तपस्या की। लेकिन सूर्य ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर कुंभ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया। इससे शनि और उनकी माता छाया को कष्ठ भोगना पड़ रहा था। यमराज ने अपनी सौतली माता और भाई शनि को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया। तब जाकर सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे।

मकर राशि में हुआ सूर्य का प्रवेश

कुंभ राशि में सब कुछ जला हुआ था। उस समय शनि देव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की पूजा की। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि मेरे आने पर धन धान्य से भर जाएगा। तिल के कारण ही शनि को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था। इसलिए शनि देव को तिल प्रिय है। इसी समय से मकर संक्राति पर तिल से सूर्य एवं शनि की पूजा का नियम शुरू हुआ।

भारत विविधताओं का देश है। यहां त्यौहार कोई भी हो लेकिन उसे किसी शहर विशेष या फिर प्रांत विशेष में नहीं मनाते बल्कि पूरे देश में मनाया जाता है। ऐसा ही एक पर्व है मकर संक्रांति। जो कि भारत में 15 जनवरी को मनाया गया है। इसे देश के अलग-अलग राज्‍यों में अलग-अलग नामों से मनाते हैं। दरअसल सूर्य का उत्तरायण होना भारत में सदियों से आनंद का अवसर माना जाता रहा है और इसे लोग अलग-अलग अंदाज में अलग-अलग नामों से मनाते रहे हैं

*उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति*

उत्‍तर प्रदेश में पोंगल मकर संक्रांति के नाम से मनाया जाता है। इस पर्व को ‘दान का पर्व’ कहा जाता है। इसे 14 जनवरी को मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन से यानी कि 14 जनवरी मकर संक्रांति से पृथ्‍वी पर अच्‍छे दिनों की शुरुआत होती है और शुभकार्य किए जा सकते हैं। संक्रांति के दिन स्‍नान के बाद दान देने की परंपरा है। गंगा घाटों पर मेलों का भी आयोजन होता है। पूरे प्रदेश में इसे खिचड़ी के नाम से भी जानते हैं।

*यहां मनती है लोहड़ी*

हरियाणा और पंजाब में इसे 14 जनवरी से एक दिन पूर्व मनाते हैं। वहां इस पर्व को ‘ लोहिड़ी’ के रूप में सेलिब्रेट करते हैं। इस दिन अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने मक्‍के की उसमें आहुत‍ि दी जाती है। यह पर्व नई-नवेली दुल्‍हनों और नवजात बच्‍चे के लिए बेहद खास होता है। सभी एक-दूसरे को तिल की बनीं मिठाईयां खिलाते हैं और लोहिड़ी लोकगीत गाते हैं।

*बंगाल में खास है मकर संक्रांति*

बंगाल में इस पर्व पर गंगासागर पर बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है। यहां इस पर्व के दिन स्‍नान करने के बाद तिल दान करने की प्रथा है। कहा जाता है कि इसी दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्‍ण की प्राप्ति के लिए व्रत रखा था। साथ ही इसी दिन मां गंगा भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगा सागर में जा मिली थीं। यही वजह है कि हर साल मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में भारी भीड़ होती है।

*बिहार में खिचड़ी*

बिहार में भी मकर संक्रांति को खिचड़ी के ही नाम से जानते हैं। यहां भी उड़द की दाल, चावल, तिल, खटाई और ऊनी वस्‍त्र दान करने की परंपरा है।

 *असम में इसे ‘माघ- बिहू’ और ‘ भोगाली-बिहू’ के नाम से जानते हैं।*

*तमिलनाडु में 4 दिनों तक मनाते हैं पर्व*

तमिलनाडू में इस पर्व को चार दिनों तक मनाते हैं। यहा पहला दिन ‘ भोगी – पोंगल, दूसरा दिन सूर्य- पोंगल, तीसरा दिन ‘मट्टू- पोंगल’ और चौथा दिन ‘ कन्‍या- पोंगल’ के रूप में मनाते हैं। यहां दिनों के मुताबिक पूजा और अर्चना की जाती है। 

*राजस्‍थान में इस दिन बहुएं अपनी सास को मिठाईयां और फल देकर उनसे आर्शीवाद लेती हैं।*

इसके अलावा वहां किसी भी सौभाग्‍य की वस्‍तू को 14 की संख्‍या में दान करने का अलग ही महत्‍व बताया गया है।